सब मीट्टी ही तो है (कथा)

जीव तथा माया के बीच अनादि काल से विरोधाभास है परन्तु यह विरोधाभास होने पर भी ऐसा दृष्टिगोचर हो रहा है कि जीव तथा माया का परस्पर संबंध है, तथा जीव इस संबध से प्रसन्न है | वास्तव मे जीव माया से संबंधित न होकर सदा से आनंद स्वरुप भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है | भौतिक जगत के प्रेय लगने वाले माया जनित विषयो मे जीव जकड़ा हुआ होने के कारण ही वह दुखोः को भोग रहा है | ज्यो ही जीव इस तथ्य को जान लेता है कि समस्त भौतिक जगत तथा उसमे दृश्यमान विषय वस्तु से वह संबंधित नही है, तथा अपने स्वरुप का स्मरण करके वह माया रुपी भ्रम जाल से मुक्त हो जाता है, तथा भगवान से संबंधित होने के कारण उन भगवान को प्राप्त कर सदा के लिए सुखी हो जाता है | इस मायानिवृति हेतु समस्त देहधारियो मे मनुष्य देह को ही उपयुक्त जानते हुए यह अधिकार दिया गया है कि वह मायाजनित वस्तुओ के प्रलोभोन को त्याग दे तथा हरि भक्ति की आकाक्षां करे | किन्तु यह बात सुनने मे जितनी सरल प्रतीत हो रही है उतनी कार्य व्यवहार मे लाने मे सरल नही है | सांसारिक विषय वस्तुओ के प्रति मनुष्य इतना अधिक लोभ मे फसाँ है कि उसे यह समझ नही आ रहा है कि प्रत्येक द्रृष्टिगोचर भौतिक जगत एवं वस्तुए नाशवान है तथा सदा रहने वाली नही है | कोई कितना भी इन भौतिक वस्तुओ का रख रखाव कर ले, इनका संग्रहण कर ले, परन्तु वह नाशवान ही है, एक दिन अवश्य बेकार हो जाएगी, समस्त भौतिक वस्तुँए पंच तत्वो से निमित है, यथा, मिट्टी, जल, वायु, अग्नि तथा आकाश, यहाँ तक कि मनुष्य का शरीर भी इन्ही पाचँ तत्वो से मिलकर बना है मानस कहती है

क्षति पावक जल गगन समीरा

पंच रचित यह अधम शरीरा

                                                                                         (श्रीरामचरितमानस)

इन सब तत्वो मे भूमि तत्व यानि  मिट्टी की प्रधानता है | इसी कारण व्यवहार मे कहा जाता है अरे भाई सब मिट्टी ही तो है | परन्तु कहने ओर करने मे जो समानता कर लेता है वह ही ज्ञानी, सन्त तथा महात्मा है | दो आत्मज्ञानी भाईयो की कथा बहुत रोचक है | किसी गाँव मे दो आत्मज्ञानी, भजनानंदी महात्मा भाई रहते थे | एक बड़ा तथा दूसरा उससे छोटा था | दोनो ही यह समझ गय थे कि यह जगत स्वप्न स्वरुप है तथा हरि का भजन ही सत्य है | शिवजी के अनुसार पार्वती जी को उपदेश दिया गया ओर शिवजी कह रहे है

उमा कहू मै अनुभव अपना

सत हरि भजन जगत सब सपना

दोनो भाई इस सत्य को आत्मसाध करके निरंतर हरि भजन करते रहते थे तथा अपना जीवन र्निवार्ह करते थे | एक दिवस दोनो भाई किसी कार्य के लिए अपने गाँव से दूसरे गाँव की ओर चल दिए | मार्ग मे उन्हे एक जंगल से निकलने वाले रास्ते से होकर जाना था | वे दोनो उस मार्ग से चलने लगे | बड़ा भाई छोटे भाई से थोड़ा आगे चल रहा था | अचानक उसने देखा कि रास्ते मे कुछ चमक सा रहा है | उत्सुकता वश उसने उस वस्तु से मिट्टी हटाई तो देखा वहाँ कुछ सोना पड़ा हुआ था | बड़े भाई ने छोटे भाई को उसी ओर आते हुए देखा और विचार किया की मेरा छोटा भाई अभी आयु मे छोटा है, हो सकता है कि इसका तत्वज्ञान अभी पक्का न हुआ हो ओर इसी कारण यह भी हो सकता है कि वह इस स्वर्ण को देख कर इसमे आसक्त हो जाए | यदि ऐसा हुआ तो इसका भजन समाप्त हो जाएगाँ | ऐसा विचार करके वह बड़ा भाई उस स्वर्ण पर जल्दी जल्दी मिट्टी डालने लगा ताकि वह मिट्टी से ढक जाए ओर दिखाई न दे | वह ऐसा कर ही रहा था कि उसके छोटे भाई ने यह देख लिया ओर बड़े भाई से पुछा कि यह आप क्या कर रहे हो | बड़े भाई ने कहा कि मैं इस स्वर्ण पर मिट्टी डाल रहा हुँ | तो छोटे भाई ने कहा कि मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे हो | सब जो दिख रहा है वह मिट्टी ही तो है | बड़े भाई को विश्वास हो गया कि उसका छोटा भाई वास्तव मे परिपक्व भजनानंदी है | इसी कारण वह इस तत्व को जानता है, कि जो कुछ भी इस संसार मे दिख रहा है वह मिट्टी ही है, ओर एक दिन मिट्टी ही बन जाएगा | इस प्रकार की स्थिति जब हम सभी मे बन जाएगी तो हमे भजन मे आनंद प्राप्त होगा | तभी हमे श्री कृष्ण चरणाऽरविंदो का मकरंद प्राप्त हो जाएगा | उस शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु हमे भगवान श्री कृष्ण की शरणागति लेनी होगी तथा, गुरुवैष्णवो के र्निदेशानुसार सदैव हरि के नामो का उच्चारण तथा कीर्तन करना पड़ेगा |

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे |

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||

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