“शिकायत नही सेवा करे”

कुछ समय पहले मै दिल्ली के एक बहुत ही कम विख्यात मंदिर मे दर्शन हेतु गया | प्रायः मै ऐसे किसी देवालय अथवा मठ या आश्रम मे दर्शन हेतु जाया करता हूँ | यह मेरे स्वभाव अर्न्तगत है | वहाँ उस मंदिर मे जाकर बहुत सुकून का अनुभव हुआ, एक बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया | दर्शन उपरान्त कुछ समय मंदिर के हाल मे ध्यान साधना के उपरान्त मै अपने अगले गंतव्य की अोर जाने की सोचने लगा | तभी मुझे मंदिर के मुख्य द्वार पर कुछ शोर सुनाई दिया | उत्सुकतावश मै उस ओर चला गया | वंहा पहुचने पर ज्ञात हुआ कि एक सुशिक्षित बहुत ही मार्डन दिखने वाला दंपति वहाँ उपस्थित एक पुजारी से लगभग झगडने वाली आवा़ज के साथ बहुत ही जोर से कुछ शिकायत कर रहे थे | उनकी शिकायत थी कि मंदिर एक धार्मिक स्थल है, यहाँ पर सब भगवान के निमित ही है | तो इसलिए यहाँ आने वाले भक्तो की सुविधाओ का ध्यान मंदिर को रखना चाहिए | वह मंदिर की अव्यवस्थाओ को लेकर बहुत क्रोध मे दिख रहे थे | उनके अनुसार मंदिर मे साफ सफाई अधिक नही थी | वह कह रहे थे, स्वच्छता मे ही ईश्वर का वास होता है |अतः मंदिर परिसर मे उचित सफाई होनी चाहिए | उचित कर्मचारी होने चाहिए इत्यादि | उनकी बात से मै भी सहमत था कयोंकि मंदिर, मठो मे व्यवस्था तथा स्वच्छता होनी आवश्यक है | खैर कुछ समय पश्चात वह शिक्षित दम्पति जाने लगा तो मैने यह ध्यान दिया कि उन्होने आते समय अपने जूते, मंदिर के बाहर बने जूता स्टैण्ड मे नही उतार कर मंदिर के मुहाने तक ले आए थे | जूता स्टैण्ड मे एक तख्ती टांग कर स्पष्ट लिखा था कि कृप्या जूते चप्पल बाहर स्टैण्ड मे ही उतारे | यह सब देख कर मेरे मन मे प्रश्‍न उठा कि क्या व्यवस्था अथवा स्वच्छता कि जिम्मेदारी केवल एक वर्ग की ही है | क्या हमारा कर्त्तव्य नही कि हम व्यवस्थाओ की दुहाई देने से पहले स्वयं को व्यवस्थित कर ले | यह बात उचित है कि मंदिरो अथवा मठो मे व्यवस्था तथा स्वच्छता इत्यादि होना आवश्यक है अौर यह मंदिर प्रशासन अथवा मठ के सेवक आचार्य का दायित्व है कि वह व्यवस्था को सुचारु रखे | परन्तु केवल मंदिर अथवा मठ से अपेक्षा करना कि वह व्यवस्थाओ का ध्यान रखे, यह गलत होगा क्योंकि यह हमारा भी कर्त्तव्य है कि मठ मंदिरो मे व्यवस्थाओ के लिए नियमित सहयोग दिया जाए | वह सहयोग चाहे आर्थिक धन रुप से हो अथवा शारिरिक सेवा रुप से हो या बौध्दिक रुप से कि हमे मठ मंदिरो के नियमो का पालन करना है | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज के अंर्तगत आने वाले किसी भी सेवा क्षेत्र चाहे वह हस्पताल हो, मनोरंजन स्थल हो, पार्क हो, हाऊसिंग सोसाईटी हो, गली मोहल्ला हो अथवा मंदिर या मठ ही क्यों न हो, सभी समाज के परस्पर सहयोग एवं बुध्दिजीविता पर ही निर्भर है | अतः व्यवस्थाओ की शिकायत करने की अपेक्षा जो हमसे सहयोग हो वह करना चाहिए | यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि कोई भी व्यवस्था हमारे ही द्वारा बनाई जाती है ओर समाज के सुविधाओ के लिए बनाई जाती है | अतः हमे ही व्यवस्थित होकर व्यवस्थाओ को चलाना है | तभी एक सुंदर राष्ट्र, सुंदर समाज तथा सुंदर आध्यात्म का निर्माण हो सकेगा |

“हरे कृष्ण”

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