धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाच्श्रैव किमकुर्वत संजयं ॥ ? ॥
शब्दार्थ:
धृतराष्ट्र ने कहा – हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र मे युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
भावार्थ:
भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रमाण “महाभारत”, वैदिक काल मे घटित घटनाओ का विवरण प्रस्तुत करता है । कुरुक्षेत्र की धर्मभूमि मे पाडवो तथा दुर्योधन इत्यादि के मध्य हुए महासंग्राम के साक्षी इस ग्रंथ से हमे भगवान के श्री मुख से कहा गया विशुद्ध ज्ञान प्राप्त होता है, जिसे आज हम सब श्रीमद् भगवद्गीता के रुप मे जानते है । कुरुक्षेत्र की रणभूमि मे लडा गया वह महासंग्राम धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है ।
उपरोक्त श्लोक मे धृतराष्ट्र के विषय लालच का बोध होता है क्योंकि उसने संजय से रणभूमि का हाल ज्ञात करना चाहते हुए पूछा कि उसके तथा पाण्डु के पुत्रो ने क्या किया । धृतराष्ट्र के छोटे भाई पाण्डु की मृत्यु हो चुकी थी और उसकी अनुपस्तिथी मे धृतराष्ट्र पांडवो के पिता समान ही था । ऐसे मे धृतराष्ट्र का दायित्व अपने तथा पाण्डु के पुत्रो के प्रति समान होना चाहिय था परन्तु राज्य सुख की लालसा के कारण वह उनमे भेद करता है तथा अधर्म आचरण का प्रदर्शन करता है । वह अपने पुत्रो को मेरे पुत्र तथा अपने भाई के पुत्रो को “पाण्डु पुत्र” कह कर सम्बोधित करता है जिससे उसके कुटिल एवं लालची मनोस्थिती का बोध होता है ।